धानुक समाज की प्रकृति
बिना समाज विकास के आप जीत की कामना नही कर सकते विकास ही नही और भी बहुत सारे मुद्दे है। अब वह दिन दुर नही जब बिहार मे भी पताका फहरायेगा धानुक समाज का, लेकिन अभी इसकी पहल कहा जाय तो बेमानी होगी हमारे अपने बिहार मे अपनी जाती के बहुत नेता हुए उन्होने धानुक जाती का नाम ले कर भवसागर पार कर ली परन्तु हमे सागर मे ही छोड़ दिया। जिसका परिणाम यह हुआ की आज हमे इतना संघर्ष करना पर रहा है मैं अभी भी कहना चाहता हूँ की इस लड़ाई को राजनिति की बली नही चढ़ने देगे इसका ध्यान रखना होगा। यह लड़ाई एक पारम्पपरिक लड़ाई है नेतृत्व की बात की जाये तो पहल कही ना कही से तो करनी होगी और जो भी पहल कर रहे है उन पर हमे विस्वास की डोर जमाये रखनी होगी चाहे नेतृत्व आप करे या हम। अपने बिहार मे ही अभी तीन संगठन काम कर रहा है लेकिन सबका उदेश्य एक ही है। लेकीन जब उनसे हमने बात की तो सब की अपनी राय है। सब एक दुसरे पर दोषारोपन ही कर रहे है क्या यह उचित है जब धारा एक है तो हम सभी विपरित धारा में क्यो बह रहे है, और इसका मुल कारण है आपसी विश्वास की कमी। इसीलिए मैं कहता हूँ पहले हमे एक दुसरे पर विस्वास करना सीखना होगा। हम