अब भी जागो धानुक समाज!
अब भी जागो धानुक समाज! धानुक समाज एक लंबे अरसे से इस भ्रम में जी रहा है कि कोई न कोई नेता, कोई मसीहा आएगा और उसका उद्धार कर देगा। पर यह सोच केवल आत्मप्रवंचना है। मैं वर्षों से देख रहा हूँ — पहले भी कई संस्थाएँ थीं जो धानुक समाज के नाम पर चल रही थीं, और आज भी कई संगठन नए चेहरे लेकर सामने आ रहे हैं। लेकिन यदि आप गहराई से देखेंगे तो पाएँगे कि चाहे पुराने हों या नए, दोनों का मकसद एक ही है — व्यक्ति विशेष का लाभ, न कि समाज का सशक्तिकरण। पहले की संस्थाएँ समाज को शासन और प्रशासन में भागीदारी दिलाने का सपना दिखा कर धोखा देती रहीं। अब की संस्थाएँ दो-चार सतही कार्य करके उन्हें सोशल मीडिया पर दिखा कर वाहवाही बटोरती हैं। यह भी एक नए दौर का छलावा है, जो समाज को गुमराह कर रहा है। असलियत यह है कि आज धानुक जाति का कोई वास्तविक नेता नहीं है, कोई प्रभावशाली संस्था नहीं है, और इसका मुख्य कारण खुद समाज की निष्क्रियता और आपसी बिखराव है। जब समाज का कोई व्यक्ति संकट में होता है — किसी बच्ची के साथ दुष्कर्म होता है, कोई मौत के मुहाने पर होता है, किसी गरीब परिवार की मदद की ज़रूरत होती है, ...तो कोई...