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धानुक दर्पण

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बिहार में प्रचलित गाथा के अशुसार कन्नौज के परिहार राजा महिपाल चाप वंशीय थे। उनके सामंत धरनी एवं चाठियावाड़ के एक भाग के स्वामि थे। इसका प्रमाण म.प्र. के माधोगढ जिला भिंड से प्राप्त पाम्रपत्र से होती है। ई. सं. 672 सन् 694 में कन्नौज के परिहार राजाओं का है, जिसमें उल्लेख है कि एक दिन पृथ्वी ने भगवान् शंकर से निवेदन किया कि मेरी दुष्टों से रक्षा कीजीये । तब भगवान शंकर ने अपने धनुष कि चाप से एक वीर को पैदा किया, जो कि धानुक कहलाये और उन्होंने पृथ्वी की दुष्टों से रक्षा की।

धानुक समाज

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चाणक्या द्वारा जब राजा नंद को गद्दी से हटाने का संकल्प लिया गया था, तब उनके पास चन्र्दगुप्त के समर्थन में कोई सेना नहीं थी। विद्धान चाणक्या द्वारा समस्त सैनीक पाटलीपुत्र के बाहर से एकत्रीत किये गये थे। उनमें भी प्रमुख रूप से उत्तर- पश्चिम म.प्र. के वीर धानुक सैनिक थे, जिन्होंने चन्र्दगुप्त के नेतृत्व में युद्ध कर राजा नंद को परास्त किया और वहिं बस गये। आज भी बिहार एवं नेपाल कि तराई में सर्वाधिक धानुक जाती के लोग पाये जातें है, जो कि वीर एवं कुशल प्रशासक अच्छे साहित्यकार हैं। बिहार मे  धानुक समाज के अनेक लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिए एवं अपने प्राणों की आहुति दी है ।

धनुष का अर्थ

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बिहार से श्री दिलावर सिंह जी के अनुसार धनुष का अर्थ 'धनु' के आगे 'क' जोरने से धनुक हुआ जिसका अर्थ 'धनुष चलाने वाला' होता है । राजा जनक के पुर्वजों को भगवा शिव द्वारा जो धनुष भेंट किया गया था । उसे भगवान श्री राम द्वारा सीता स्वयंवर में तोड़ा गया था । यह धनुष भगवान शिव द्वारा राजा सतधनु, जिन्हे कि धनक मुनि भी कहा जाता है , को भेंट किया गया था। जो कि राजा जनक के पुर्वज थे ।