दहेज प्रथा बिहार का अभिश्राप है

जय धानुक समाज दहेज़ के बारे में लिखना पढ़ना उसे बुरा बताना तो हर कोई चाहता है, पर उसे खत्म करना कोई नहीं चाहता क्यों?

जब बात बेटे कि शादी कि हो तो बाप बहुत ही चौरा होकर दहेज मांगता है, और जब देने कि बाड़ी आए तो सर पकर कर रोता हैं। थोड़ा कड़वा है परन्तु १००% सच्च है, अगर किसी को बुड़ा लगे तो छमा प्रार्थी हूं 🙏

खासकर के मिथिलांचल के धानुक भाईयों वो दिन अब ज्यादा दुर नहीं, जब आपको भी अन्य प्रदेशों के तरह, अपने बच्चों के लिए लड़की मिलना बंद हो जाए।

आज जिस तरह से गरीबी मां बाप अपने बेटीयों कि सादी UP करने पर मजबुर हैं।

हम किसी भी नेता या पार्टी को जानतें हैं या नहीं, उस से पहले क्या हम खुद को जान पायें हैं। 

बहुत सारे हमारे आदरणीय समाज सेवक को देखा हुं, facebook whatsapp पर तो समाज सेवा की बात करते हैं, बात जब दहेज लेने की आती है उसे बड़े ही शिद्दत से अंजाम देते हैं, है ना अजीब।

जब बच्चे शिक्षित हो जाते हैं तो उसे किसी नेता की पैरवी की जरुरत नहीं पड़ता, वह अपना रास्ता खुद ढूंढ लेते हैं ।
बस जरुरी है उस स्तर की शिक्षा के जो हमारे समाज में ज्यादा तर घरों में होना मुश्किल हैं, खास करके मिथिलांचल में तो ना के बराबर है।
वजह है दहेज और ग़रीबी जिवन।

आज मिथिलांचल में किसी के घर में बेटी पैदा हो जाता है तो पढ़ाई से पहले पिता के दिमाग में दहेज आता हैं। 

मै दहेज नहीं लुंगा व तो ठीक है, पर मुझे दहेज ना देना पड़ेगा ए कोन बताएगा।
 बिरेन्द्र मंडल धानुक 

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