जिंदगी कि हद, रोटी-कपड़ा-मकान पर है। पर हमारे लालच की हद, सातवें आसमान पर है पक्षी की है उतनी दुनिया, वो जितनी ऊंची उड़ान पर है मेरा खुदा जमीन पर है, उसका तो आसमान पर है

 नेता का मतलब है समाज का नेतृत्व करने वाला मार्गदर्शक ऐसा मार्गदर्शक जिसे समाज की सारी समस्याओं का सही जानकारी हो इतना ही नहीं बल्कि उन समस्याओं का हल करने की भी  क्षमता हो जिसमें यह गुण हैं,वह समाज और देश का सही दिशा दे  सकता है। जिस देश या समाज में ऐसा नेता   होंगे वह देश समाज हमेशा तरक्की करेगा, जिस देश या समाज में ऐसा  नेताओं कि अभावों होंगे,वह देश या समाज समस्याओं से घिरा रहेगा।

ऐसा नहीं है कि हमारे समाज में बुद्धिजीवी लोगों की कमी है बस कमी है एक सच्चे ईमानदार समाज प्रेम देश प्रेम करने वाले सच्चे लीडर का जो आज तक धानुक समाज को नहीं मिला। इसलिए समाज अनेक समस्याओं से गिरा हुआ है।
समाज का मार्गदर्शन करना एक गुरु की जिम्मेदारी है,
जिसे हर कोई नहीं निभा सकता प्राचीन काल में गुरु की भूमिका पुरोहित लोग निभाते थे ज्ञान का प्रसार करना और राजतंत्र की गहरी रुचि रखते थे और वो पद और प्रतिष्ठा से हमेशा दूर रहते थे।
आज का सामाजिक दृश्य कुछ अलग ही है लोग पद और प्रतिष्ठा के लिए किसी हद तक जा सकता है।
चाणक्य की नीति सभी जानते हैं गुरु रामदास,शिवाजी महाराज के आध्यात्मिक गुरु थें, राजनीतिक सलाहकार भी और एक समाज सुधारक भी थे. सूझ-बूझ और दूरदर्शिता का धनी और अरस्तू अगर नहीं होता तो सिकंदर भी कभी इतना महान नहीं होता।
जरूरत है हमारे समाज में कुछ ऐसे गुरुओं की, आज समाज चारों तरफ ऐसे लोगों से घिरा हुआ है जो समाज में एक आधा कार्य करते हैं किसी एक समाज की मदद के लिए आगे बढ़ाते हैं और वह हो जाता है समाज का नायक, कुछ तो ऐसे हैं जो साल में एक आधा समाज के नाम पर बैनर लगा लेते हैं और वह भी हो जाते हैं समाज के बड़े नायक। और हम भी उनके पीछे जय धानुक समाज जय धानुक समाज के नारे लगाकर घूमने लगते हैं, भाई इसमें हमारी गलती कितनी है इसकी गिनती करना तो हमारे बस में है ही नहीं, क्योंकि हम तो अनपढ़ हैं हमारा व्याकरण सही नहीं है हमारा ग्रामर सहि नहीं हैं, हम अच्छे बोल नहीं सकते हम अच्छे लिख नहीं सकते।पर समाज के उन पढ़े-लिखे सम्मानित व्यक्ति के आवाज में क्यों दीमक लग जाता है, जो कहता है कि जो कुछ भी हो मैं ही हूं, मैं समाज का इंजीनियर हूं,मैं समाज का डॉक्टर हूं, मैं समाज का पढ़ा-लिखा नेता हूं, मैं फलाना हूं चिलाना हूं।
कुछ दिन पहले धानुक समाज के कुछ युवा वर्ग ने एंट्री मारा है समाजीक कार्य में। एंट्री इतनी जोरदार थी बहुत लोगों के दिल में घंटी बजने लगा, अरे वाह एक गाना भी है। तुमने मारी एंट्री यार दिल में बजी घंटि यार टंग टंग........
हा हा हा हा .......... माफ किजीए।
चलिए मुद्दे पर आते हैं युवाओं में पहले तो यह खोज निकाला बिहार धानुक समाज के गर्व मानेजाने वाले #अमर_शहिद_रामफल_मंडल जी को बिहार सरकार ने 2015 में शहीद का दर्जा दे दिया। यहां पर कुछ प्रश्न उठता है  पुराने मजे हुवो समाज सुधारक पर। पर मैं उस प्रश्न को नहीं उठाऊंगा क्योंकि यह समाज हित में नहीं होगा।
बहुत खुशी की बात थी, युवाओं का यह खोज समाज कार्य कर उन लोगों के लिए एनर्जी  बन गया जो किसी वजह से मायूस होकर बैठ गए थें। दोस्तों उन मायूस लोगों में से एक मैं भी हुं।
दोस्तों जो उनकी दूसरी एंट्री था जिसने बहुत जोर की घंटी बजा दी वह था, अमर शहीद रामफल मंडल जी के राष्ट्रीय शहीद का दर्जा देने के लिए केंद्र मंत्री जी से मिलना, यहां तक सब ठीक-ठाक था।
लेकिन जैसे ही अगले सुबह उन्होंने एक संस्था रजिस्ट्रेशन की घोषणा की मानो जैसे वह अपने लिए सवालों का एक पहाड़ खड़ा कर लिए|
जिसका जवाब वह देना भी चाहे वह पूरी जिंदगी उनके सवालों को जवाब देने में ही कट जाएगा, क्योंकि उनके सवालों का कोई अंत नहीं है वो कल भी सवाली थे आज भी सवाल है और परसों भी सवाल ही रहेंगे। सभी युवा भाइयों से विनम्र निवेदन है कि जो गलती आपने पहले किया उनको ना दोहराते हुवो अपने लक्ष्य की ओर बढ़िए।

पर मुझे एक बात समझ में नहीं आया एक सामाजिक व्यक्ति इतना नफरत कैसे कर सकता है वह भी अपने समाज के हि प्रती बार-बार अपने ही समाज के दबे कुचले वर्ग के युवाओं को यह कैहकर अपमान करता है कि उनके पास शिक्षा की कमी है इसलिए उन्हें समाज में किसी पद पर रहने का हक नहीं है|
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ : बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके. कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।
कुछ लोगों का तो यह मानना है कि उन युवाओं ने एक पाठशाला में पढ़ कर दूसरी पाठशाला खोलो अरे भाई हद हो गई उन्होंने पाठशाला ही तो खुला है ना पाठशाला है पढ़कर दारू का ठेका तो नहीं।
चलिए मान लेते हैं हमारे देश में कई राजनीतिक पार्टियां हैं जो देश हित में कार्य करता है या करने का दावा करता है, हमारे देश के 90% से ज्यादा लोग किसी न किसी पार्टी से जुड़े हुए हैं या मतदाता के रूप में या फिर पदाधिकारी के रूप में लेकिन, जब देश पर या समाज पर कोई आपदा आती है हर कोई एक साथ खड़ा हो जाता है मैं अपने समाज केेे बड़े बड़े शिक्षित लोगों से यही आशा करता हूं कि उन युवाओं नें कोई बड़ा गलती तो नहींं किया है हो सकता है उनकेे पीछे कोई उनकी मजबूरी हो आपको उस मजबूरी की पता लगाना चाहिए और उनका हौसला बढ़ाना चाहिए



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