भारत का प्रथम शहीद तिलका मांझी उर्फ जबड़ा पहरीया


दोस्तों आज मैं भारत के प्रथम आदि विद्रोही प्रथम शहीद तिलका मांझी उर्फ जबरा पहाड़िया जी के बारे में।
बात करने वाला हुं। यहां देखें

क्या हूवा चौक गयें, भाई चौंकिये नहीं, मेरे साथ भी ऐसा हि हुवा था, बचपन से सुना था कि हमारे देश का प्रथम बिद्रोही शहीद मंगल पांडेय जी हैं, दोस्तों मंगल पांडेय जी हमसभी भारतीयों के लिये अपने प्राणो कि आहुति दिया हैं, मैं बिरेन्द्र मंडल उनके चरन कमलो में कोटि-कोटि नमन करता हुं।
और ना हि मेरा मंसा किसि भी शहीद कि शहादत को माप तोल करना हैं, बस देश और समाज के सामने इतिहास के कुछ धुंधला पन्नों का उजागर करना हैं, इस मकसद से इस चाइनल का निर्माण भी हुवा है।
किसि ने क्या खुब लिखा हैं दोस्तों
पूजे न शहीद गए तो फिर, यह पंथ कौन अपनाएगा ?
तोपों के मुँह से कौन अकड़ अपनी छातियाँ अड़ाएगा ?
चूमेगा फन्दे कौन, गोलियाँ कौन वक्ष पर खाएगा ?
अपने हाथों अपने मस्तक फिर आगे कौन बढ़ाएगा ?
पूजे न शहीद गए तो फिर आजादी कौन बचाएगा ?
फिर कौन मौत की छाया में जीवन के रास रचाएगा ?
पूजे न शहीद गए तो फिर यह बीज कहाँ से आएगा ?
धरती को माँ कह कर, मिट्टी माथे से कौन लगाएगा ?
लेकिन पता नहीं क्यों, आज हमारे देश के आदिविद्रोही, जबड़ा पहारिया उर्फ तिलका मांझी, उस पुजा से आज भी वचिंत हैं।

दोस्तों आज के दोड़ में हम सभी आधुनिक जीजों से लैस हैं, बहुत तरह के सुविधाएं है, हम भारतीयों के पास जरा सा खंरोच से लेकर हड्डियां टुटने के दर्द भी आज चुटकी में खत्म हो जाता हैं। और अस्थाय रुप से इलाज भी।
चलिये थोड़ी देर के लिये कल्पना करतें हैं, कि आपको चार घोडों में बांध कर मिलों घसीटा जाऐ, उसके बाद सरेआम फांसी पर लटका दिया जाऐं, फिर कैसा दर्द होगा, मै तो कहता हुं आज के मनुष्य चदं मिटों में, प्राण त्याग देगा ।
ठीक यही सजा मिला था जबड़ा पहारिया उर्फ तिलकामांझी जीको, लेकिन भारत मा के सपुत ने उस बक्त भी जब उसे घसीट हुवे भागलपुर बिहार तक ले गया, व सिर्फ जिन्दा हि नहीं उस वक्त भी सेर के तरह दहाड़ रहा था वह शेरनी के लाल तब भी अंग्रेजी फौज को ललकार रहा था, आइऐ अब जानतें हैं उस महावीर योद्घा के बारे में
1.तिलका माँझी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत को ग़ुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेज़ों के विरुद्ध सबसे पहले आवाज़ उठाई थी।
3.राजमहल के सुपरिटेंडेंट क्लीव लैंड को तिलका माँझी ने 13 जनवरी, 1784 को अपने तीरों से मार गिराया। क्लीव लैंड की मृत्यु का समाचार पाकर अंग्रेज़ी सरकार डांवाडोल हो उठी और सत्ताधारियों में भय का वातावरण छा गया।
इन्होंने 1778 ई. में पहाड़िया सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को खदेड़ कर कैंप को मुक्त कराया।
4.भारतीय स्वाधीनता संग्राम' के पहले शहीद थे। इन्होंने अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध एक लम्बी लड़ाई छेड़ी थी। संथालों द्वारा किये गए प्रसिद्ध 'संथाल विद्रोह' का नेतृत्त्व भी तिलका माँझी ने किया था। तिलका माँझी का नाम देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्रामी और शहीद के रूप में लिया जाता है।  इस वीर स्वतंत्रता सेनानी को 1785 में गिरफ़्तार कर लिया गया और फिर फ़ाँसी दे दी गई।
5.तिलका माँझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में 'तिलकपुर' नामक गाँव में एक संथाल परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम 'सुंदरा मुर्मू' था। तिलका माँझी को 'जाबरा पहाड़िया' के नाम से भी जाना जाता था। बचपन से ही तिलका माँझी जंगली सभ्यता की छाया में धनुष-बाण चलाते और जंगली जानवरों का शिकार करते। कसरत-कुश्ती करना बड़े-बड़े वृक्षों पर चढ़ना-उतरना, बीहड़ जंगलों, नदियों, भयानक जानवरों से छेड़खानी, घाटियों में घूमना आदि उनका रोजमर्रा का काम था। जंगली जीवन ने उन्हें निडर व वीर बना दिया था। अंग्रेज़ी अत्याचार किशोर जीवन से ही अपने परिवार तथा जाति पर उन्होंने अंग्रेज़ी सत्ता का अत्याचार देखा था। अनाचार देखकर उनका रक्त खौल उठता और अंग्रेज़ी सत्ता से टक्कर लेने के लिए उनके मस्तिष्क में विद्रोह की लहर पैदा होती। ग़रीब आदिवासियों की भूमि, खेती, जंगली वृक्षों पर अंग्रेज़ी शासक अपना अधिकार किये हुए थे। जंगली आदिवासियों के बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों को अंग्रेज़ कई प्रकार से प्रताड़ित करते थे। आदिवासियों के पर्वतीय अंचल में पहाड़ी जनजाति का शासन था। वहां पर बसे हुए पर्वतीय सरदार भी अपनी भूमि, खेती की रक्षा के लिए अंग्रेज़ी सरकार से लड़ते थे। पहाड़ों के इर्द-गिर्द बसे हुए ज़मींदार अंग्रेज़ी सरकार को धन के लालच में खुश किये हुए थे। आदिवासियों और पर्वतीय सरदारों की लड़ाई रह-रहकर अंग्रेज़ी सत्ता से हो जाती थी और पर्वतीय ज़मींदार वर्ग अंग्रेज़ी सत्ता का खुलकर साथ देता था।
बाद में आयरकुट के नेतृत्व में जबरा की गुरिल्ला सेना पर जबरदस्त हमला हुआ जिसमें कई लड़ाके मारे गए और जबरा को गिरफ्तार कर लिया गया। कहते हैं उन्हें चार घोड़ों में बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाया गया। पर मीलों घसीटे जाने के बावजूद वह पहाड़िया लड़ाका जीवित था। खून में डूबी उसकी देह तब भी गुस्सैल थी और उसकी लाल-लाल आंखें ब्रितानी राज को डरा रही थी। भय से कांपते हुए अंग्रेजों ने तब भागलपुर के चौराहे पर स्थित एक विशाल वटवृक्ष पर सरेआम लटका कर उनकी जान ले ली। हजारों की भीड़ के सामने जबरा पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। तारीख थी संभवतः 13 जनवरी 1785। बाद में आजादी के हजारों लड़ाकों ने जबरा पहाड़िया का अनुसरण किया और फांसी पर चढ़ते हुए जो गीत गाए - हांसी-हांसी चढ़बो फांसी ...! - वह आज भी हमें इस आदिविद्रोही की याद दिलाते हैं।
खुशनसीब होते है वो जो वतन पर मिट जाते है
मर कर भी वो लोग अमर शहीद हो जाते है
करता हूँ तुम्हे सालम ऐ वतन पर मिट जाने वालो
तुम्हारी हर साँस के कर्ज़दार है हम देश वाले |




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