माँ को बनाकर खुदा बेरोजगार हो गया



मैं मानता हूं कि मेरे blogger के कैटेगरी के हिसाब से यह लेख मैच नहीं खाता है,
पर क्या करें दोस्तों मां के आगे तो सारा कायनात झुक जाता है।
एक माँ रहती है मेरे मंदिर जैसे घर में, और दूसरी मां का आगमन हो चुका है पूरे हिंदुस्तान भर में। #जय_माता_दी
खुदा ने कुरान ए शरीफ में,भगवान राम जी रामायण मे, भगवान श्रीकृष्ण जी ने द्वापर युग में, माँ कि प्यार कि कुछ ऐसी मिसाल दि है, उठाके जन्नत और स्वर्ग माँ के कदमो में डाल दि हैं।
कौन हो तुम इस कदर नाजुक हो जो हाथ लगाने से बिखर जाती हो, और इस कदर मजबूत हो जो पर्वत को चीर कर नदियों के तरह गुजर जाती हो।
तुम्हारी आवाज इतनी मध्यम है कि वक्त को भी लोरिया गाकर सुला दे,
और यही आवाज जब औलाद के हक के लिए गूंज उठे तो चट्टान जैसे मुश्किलों को तिनके की तरह उड़ा दे।
ऐसी कोई ठोकर ना बन सकी जो तुम्हें गिरा दें, फिर भी रोज हाथों से गिरती हो दुआओं की तरह,
धूप जैसे तपते हौसले हैं तुम्हारे और खुद नजर आती हो छांव की तरह।

पहचान गया मैं तुम्हें, जान गया तुम कौन हो तुम,किसी मंदिर से उठती हुई लोवान का धुआं हो तुम, किसी मस्जिद से आती हुई सवेरे कि  आजां हो तुम, कोई सरहद नहीं जिसकी व आसमां हो तुम, माँ हो तुम मेरी माँ हो तुम।।
माँ जब रसोई से रोटियां लाऐं, अपने हाथों से खिलाएं, तो प्यार से खाना, बड़ें सुकून बड़ें करारा से खाना,ए तुम्हारी खुशकिस्मती है दोस्त, जिन्दगी सब पर युं मेहरबां नहीं है , जरा देखो अपने चारों तरफ़ किसी के पास रोटियां नहीं होती तो किसी के पास माँ नहीं होती।
सैकड़ों बाड़ सुना है ए कहांनि कि खुदा हर जगह महजुद नहीं रैह सकता इसलिए उसने माँ बनाई,
पर आगे कि कहांनि किसी ने नहीं सुनाई, आज मैं सुनाता हूं, ऐसा नहीं है कि माँ को बनाकर खुदा ने कोइ जष्न मनाया, बल्कि सच्चाई तो ए है कि खुदा खुब पछताया, कब उसका एक-एक जादू किसी और ने चुरालिया, व जान भी नहीं पाया, खुदा का काम था मोहब्बत व माँ करनेलगी,
खुदा का काम था हिफाजत ओ मां करने लगी, खुदा का काम था बरकत ओ भी माँ  करने लगी,
देखते ही देखते उसकें आँखों के सामने कोइ और परवरदिगार होगया, व बहुत पछताया बहुत मयूस हो गया क्योंकि माँ को बनाकर खुदा बेरोजगार हो गया।
एक पलेट मे मिठाई के दो टुकड़े, तीन लोगों का परिवार,
मुझे मीठा आछा नहीं लगता मां यही कहती थी हर बार,
जिन्दगी भर मैं उसके झूठ पर यकीन करता रहा, जैसे- मुझे बाहर खाना पसंद नहीं, मुझे सिनेमा जाना पसंद नहीं, कांच तो सुहागन का शगुन है, चांदी की चुडियां क्या करूंगी,संदूक मे सैकड़ों पड़ें हैं नयी साड़ियां क्या करुंगी,
व इतना ही मुस्कुराई जितना उसका दिल दुखा है, दुनिया की सबसे बड़ी झूठी है वो, पर काइनात का हर सच्च उसके सजदे मे झुका है।
बहुत मसरूफ हो तुम समझता हूं, घर दफ्तर कारोबार और थोड़ी फुर्सत मिली तो दोस्त-यार,
जिन्दगी पहियों पर भागती है, ठहर कर ए सोचना मुश्किल कि मां आज भी तुम्हारे इन्तजार मे जागती है,
सूनो आज दो घड़ी बैठो उसके साथ, छेड़ो कोइ पुराना किस्सा, पूछों कैसें हुई थी पापा से पहली मुलाकात,
दोहराव उसके गुजरें जमाने, बजाव मोहम्मद रफी के गाने, जो करना है आज करों कल सूरज सर पर पिघलेगा तो याद करोगे मां से घना कोइ दरख नहीं था, इस पछतावे के साथ कैसें जीयोगे कि व तुमसे बात करना चाहतीं थी, और तुम्हारे पास वक्त नहीं था
माँ बहुत बड़ें-बड़ें सपने देखें है मैनें,एक दिन मैं बुलंदियों के तस्वीर बनुंगा, शोहरतों का नजीर बनुंगा,बहुत कामयाब बहुत अमीर बनुंगा,
लेकिन ए सब तेरे किस काम का, दुनियां का सबसे दौलतमंद हो गया फिर भी तेरा कर्जदार रैह जाउंगा, जौ सिक्के तुने मेरा नजर उतारा के गंगा मे फेंक दीऐं व तुझे कभी नहीं लौटा पाउंगा।
माँ मै फिर भी तेरा कर्जदार रह जाउंगा
एक दिन सबेरे-सबेरे सोके उठा तो मेरि आंखें कुछ लाल थी, मांने पुछा क्या हुवा, मैनें कहा कुछ नहीं देर रात तक पढता रहा सायद इसलिए, मां का अगला सवाल सच्च बता  कोन है व लड़कि क्यों छोड़ दिया तुझे।
फिर कैलेंडर पे दिन महिने साल बदले, मां ने अपना घर बदल लिया, पर मेरि जिन्दगी में कुछ खास नहीं बदला, वक्त के हाथों दिल आज भी दुखता है, आँखें आज भी लाल होती है, बस व दिया बुझ गया, घर मे उजाला था जिसके होने से, व जासूस चला गया जो आँखे देख कर जानलेती थी कि कम सोने से लाल हुवा है या जादा रोने से।
ना जाने खुद को कुल दिखाकर ऐसा क्या पा जाते हैं लोग,
हाथ पर बना के मां के नाम का टैटू,
मां से मिलने वृद्ध आश्रम में जाते हैं ।
जिंदो से दुश्मनी मुर्दों से यारी हमारे भारतीय समाज में हैं यह एक अजीब बीमारी।
जिंदा हो मां-बाप तो दबाओ और एक लोटा पानी के लिए तरस जाते हैं, उनके मरने के बाद हम लोग लाखों लुटाते हैं।

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