अगर हम हिन्दु हैं तो तिवारी,दुबे,मिश्रा,सिंह,पटेल,गुप्ता , कुशवाहा,मौर्या,राम,निषाद लिखने की क्या जरुरत है...

 अतिआवश्यक जानकारी

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   अगर हम हिन्दु हैं तो तिवारी, दुबे, मिश्रा, सिंह, पटेल, गुप्ता, कुशवाहा, मौर्य, राम, निषाद लेखन की क्या आवश्यकता है ...

    सब का टाईटल हटा कर केवल हिन्दु कर दो और सब का तुमस में रोटी बेटी का संम्बन्ध स्थापित करो

   केवल शुद्र में 6743 जातियां क्यों है ...

  चुनाव के समय, हिन्दू मुस्लिम के बीच लड़ाई के समय हम हिन्दु और बाकि समय हरे चमरा, हरे दुःधा, हरे अहिरा, हरे नरिया क्यों ...?

    # अपने_आपको_पहचानिए

    1. संविधान के अनुच्छेद -340 के अनुसार सभी ओबीसी हिंदू नहीं हैं। 

     2. संविधान के अनुच्छेद- 341 के अनुसार सभी एससी हिन्दू नहीं हैं। 

      3. संविधान के अनुच्छेद -342 के अनुसार सभी एसटी हिन्दू नहीं हैं। 

     4. तो फिर ओबीसी, एससी और एसटी क्या हैं? 

      उत्तर: - ये इस भारत देश के मूल निवासियों हैं।

      5. फिर हिंदू कौन हैं?

       सवर्ण भी अपने को हिन्दू नहीं मानते क्यों?

      क्योंकि वर्तमान में जो सवर्ण हैं, उन्होंने विदेशी आक्रांताओं, मुस्लिमों, मुगलों आदि से रोटी-बेटी का रिश्ता कायम किया है। 

     उन्होंने मुगलों को जजिया कर नहीं दिया था: - क्योंकि वे भी यूरेशियाई विदेशी है, ये मैं नहीं भारत की सेलुलर एन्ड मॉलिक्युलर बायोलॉजी की प्रयोगशाला हैदराबाद कह रही है।     

      6. फिर हिन्दू है क्या: - हिन्दू फ़सी भाषा का शब्द जिसका अर्थ गुलाम, चोर, धोखेबाज, काला कलूटी होता है।

     ये मैं नहीं Google पर 'हिन्दू' शब्द खोज द्वारा उसका अर्थ। ईरान, समलैंगिक, अफगानिस्तान, अरब, यूरोप, अमेरिका आदि देशों के निवासी भारत में रहने वाले सभी नागरिकों / मूलनिवासियों को हिन्दू कहते हैं कि क्या वह मुस्लिम या सिक्ख या जैन आदि ही क्यों न हो। 

        'हिन्दू' शब्द सबसे पहले लिखित तौर पर गीता प्रेस गोरखपुर, हिन्दू महासभा आदि ने 1923 में प्रयोग किया है। किसलिये: - ओबीसी, एससी, एसटी को लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित करने के लिए।

      7. आप (ओबीसी, एससी और एसटी) कॉन्स्ट के अनुसार हिंदू हिंदू नहीं हैं। तो फिर किस मुंह से आप कह रहे हैं कि अभि से कहो कि हम हिंदू हैं।

       8. ओबोसी, एससी और एसटी द्वारा स्वयं को हिन्दू कहने से किसको लाभ हो रहा है और किसको नुकसान हो रहा है? 

       1947 से 2019 तक 72 साल में ओबीसी जिनकी आबादी 52% है, उनकी अनूपतिक भागीदारी मीडिया, शिक्षा और उच्च शिक्षा से लगभग शून्य है। कार्यपालिका में उच्चपदों पर केवल 1% सहित अन्य पदों पर केवल 4% रह गयी। विधायिका में ओबोसी के लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ने के बजाय केवल अपना परिवार पाल रहे हैं और दलाली कर रहे हैं। 

      एससी और एसटी की आबादी 25% होने पर भी कुल मिलाकर उन्हें कार्यपालिका, न्यायपालिका, मीडिया आदि में 10% भी प्रतिनिधित्व करते हैं उन्हें मिल नहीं पाया है। 

     9. निष्कर्ष ये है कि इन 72 वर्षों में 77% मूलनिवासी (ओबीसी, ऐसी और एसटी) लोकतन्त्र के आसपास की गतिविधियों से या तो बाहर हो चुके हैं या ये लोग अपने समाज के लोगों के लिए नकारा हो चुके हैं।

     # उदाहरण: भ्रष्टाचार के खिलाफ होने पर भी कोई मूलनिवासी सांसद या विधायक क्रीमीलेयर के विरोध में खड़ा हुआ है? 

     एक तरह से 50.5% पद सवर्णों के लिए आरक्षित किए जा चुके हैं। संविधान विरोधी होने पर भी कोई मूलनिवासी सांसद या विधायक इसका विरोध कर रहा है? 

     आर्थिक आधार सामान्य प्रश्न को 10% आरक्षण प्रस्ताव के खिलाफ, कोई मूलनिवासी सांसद या विधायक क्या इसका विरोध कर रहा है? 

     10. अतः जब तक 77% मूलनिवासी अपने को हिन्दू कहे जाने का एक साथ विरोध नहीं करेंगे तब तक उनके खिलाफ सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, धार्मिक, शैक्षणिक अपराध और अनैतिक कार्य होते रहेंगे।

     क्योंकि उनके संवैधानिक अधिकारों का रखवाला कोई नहीं है और जो वहाँ भी हैं वे केवल अपने या अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं उन्हें बहुएं (ओबोसी, एससी और एसटी) से कोई सरोकार नहीं रह गया है।

       कुछ लोगों को आपके अधिकारों के रक्षक होने का नाटक कर रहे हैं, उन्हें भी होशियार हो जाने की जरूरत हैं।

       गर्व से कहो कि हम भारत के मूलनिवासी हैं।

    जय भीम-जय मूलनिवासी!

    जय भारत - जय काँस्ट !!

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