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धानुक एक विर कोम है

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धानुक जाती प्राचिन काल मे एक वीर कोम थी, जिसका कार्य सेना में धनुष बाण चलाना अपनी अजीविका चलाना था। इसे जाति विशेष से संबोधित नहीं किया जाता था, बल्कि एक समूह विशेष को जिसे धानुक आदि नाम से सम्बोधित किया जाता था। धानुक जाति का उल्लेख कई जगह किया गया है। जैसे महाकवि मलिक मोहम्मद जायसी ने अपनी पुस्तक पद्मावत में निम्न प्रकार उल्लेख किया है- गढ़ तस सवा जो चहिमा सोई, बरसि बीस लाहि खाग न होई बाके चाहि बाके सुठि कीन्हा, ओ सब कोट चित्र की लिन्हा खंड खंड चौखंडी सवारी, धरी विरन्या गौलक की नारी ढाबही ढाब लीन्ते गट बांटी, बीच न रहा जो संचारे चाटी बैठे धानुक के कंगुरा कंगुरा, पहुमनि न अटा अंगरूध अंगरा। आ बाधे गढ़ि गढ़ि मतवारे, काटे छाती हाति जिन घोर बिच-बिच बिजस बने चहुँकारी, बाजे तबला ढोल और भेरी महाकवि का कथन है कि किले के प्रत्येक कंगूरे पर वीर धनुर्धर बैठे हैं और किले की रक्षा का भार उन्हीं पर है। उनके बाणों की जब वर्षा होती है तो हाथी भी गिर जाते हैं।

धानुक समाज कि सफल मिटिंग (महथा,लदनीया,मधुबनी)

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जय धानुक समाज  आज दिनांक 13 सितम्बर 2016 को देवनन्दन मंडल के अध्यक्षता मे ग्राम महथा (मधूबनी) धानुक समाज का एक मिंटिंग हूवा जिसमे निम्नलिखीत बातो समाज के बिच खूल कर बिचार बिमर्स हूवा:- 1.आ0 भा0 धा0 महासंघ कि बिसतार रूप से समाज को जानकारि 2.समाजीक एक्ता का महत्व कि जानकारी का अर्दान प्रदान हूवा । साथ हि एक पोजीटिव बात देखने और सूनने को मिला वह भी अशिक्षीत बुजूर्ग वर्ग के माध्यम से, कि हम आर्थीक रूप से कमजोर है इसके लीए हमलो प्रतेक घर से पर महिने कूछ रासि जमा करें ताकि समैय आने पर हम महथा धानुक समाज के हर कार्यक्रम चाहे व शहिद के शहादत समारोह हो या राजनेतीक क्रर्यक्रम उसमे पुर्ण रूप से भाग लें सके । मै आज पहिली बार समाज के बिच संस्था के वर से इस मिटिंग को संचालीत करते हूवे बहूत सौभआग्यसाली मैहशुस कर रहा हू और आज हमे बहूत होसला प्राप्त हूवा है अपने जन्म भूमि से, आगे इसि प्रकार का संचाल पूरे प्रखण्ड मे करने को इक्छुक हू आप सभी से अनुरोध है हमारा साथ दे अपने परिवार जनो से संर्पक करावे ।

धानुक समाज के टाइटल

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धानूक एक राष्ट्रीय जाती है, जों सम्पूर्ण भारतवर्ष में अथवा नेपाल , में पायी जाती हैं , यह जाती बिभिन्न प्रदेशों मे बिभिन्न नामो बिभिन्न उपजातीयों बिभिन्न गोत्रों अथवा अलग अलग टाईटलों से इस्थीत हैं। जैसे:- धानुक, धानक, धनूका, धनिक, धनवार,धेनक, धनुर, धनकया, धनेधर, धनूधारि, धनुष, क्षत्रीय, धानूष, धनुराया, धाकड़ा, धनूवंशी,धनवन्त, धनन्जय, धनकड, धानड़, धकडे, धांची, कठ, कठेरिया, कैठिया, कथेरिया, कोरी, गोरवी, जुलाहे, वसोड, वर्गी, बरार, वंशकार, वास्को, साइस, वावन, मंडल, मेहता, महतो, पटेल, महाशय, पंडवी, तलवी, रावत, राउत, हजारी, लकरीहा, भूसेली, आदी नामो से जानै जाते हैं। आसल मे व धानुक/धनक हि हैं। आप सभी भाईयों से अनूरोध है कि इस मैसज को इतना सैर करें कि एक एक धानूक भाई तक पंहूच जाए, धानूक समाज को एकत्रीत करने मे हमारा मदत करें?????

चलो पटना धानुक समाज

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अखिल भारतीये धानूक उत्थान महा संध बिहार प्रदेश 23 अगस्त अमर शहीद रामफल मंडल जी के शहादत दिवस मनाया जा रहा है मै आपने सभी धानूक भाइयो से अपील करता हूँ की आप सब 23 अगस्त को पटना पहुचे और इस कार्य करम को सफल बनायें  सम्भवतः भारतीय नृत्य कला मंदिर, फ्रेजर रोड, रेडियो स्टेशन के नज़दीक । आप सभी सादर आमंत्रित है शहिद रामफल मंडल जी का जन्म 6 अगस्त 1924 ई0 को बिहार,सीतामढी जिला के बाजापट्टी प्रखण्ड के मधुरापुर (धानुक टोला) मे हुवा था। इनके पिताजी का नाम गोखुल मंडल तथा माताजी का नाम गरबी देवी था। रामफल मंडल जी अपने चार भाईयों में तीसरे स्थान पर थे। कृषी कार्य, पशुपालन तथा पशुवों की खरिदि बिक्रि परिवार के आय के प्रमूख स्रोत थे। रामफल मंडल जी अपने इलाके के नामि-गिरामी पहलवा थे। 16वर्ष के आयु में रून्नीसैदपूर प्रखण्ड के गंगवारा में अमिन मंडल की पुत्री जगपतिया देवी के साथ इनका विवाह हुवा। उस समैय हमारे देश विदेशी सासन के अधीन था और चारों तरफ अंग्रेजी सासन का जोर-जुल्म, शोषन, अत्याचार, और आतंक चरम पर था। हिन्दुस्तानी आवाम और मातुभुमी को विदेशी हुकुमत से मुक्त कराने का प्रण कर चुके रामफल मंडल

धानुक दर्पण

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बिहार में प्रचलित गाथा के अशुसार कन्नौज के परिहार राजा महिपाल चाप वंशीय थे। उनके सामंत धरनी एवं चाठियावाड़ के एक भाग के स्वामि थे। इसका प्रमाण म.प्र. के माधोगढ जिला भिंड से प्राप्त पाम्रपत्र से होती है। ई. सं. 672 सन् 694 में कन्नौज के परिहार राजाओं का है, जिसमें उल्लेख है कि एक दिन पृथ्वी ने भगवान् शंकर से निवेदन किया कि मेरी दुष्टों से रक्षा कीजीये । तब भगवान शंकर ने अपने धनुष कि चाप से एक वीर को पैदा किया, जो कि धानुक कहलाये और उन्होंने पृथ्वी की दुष्टों से रक्षा की।

धानुक समाज

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चाणक्या द्वारा जब राजा नंद को गद्दी से हटाने का संकल्प लिया गया था, तब उनके पास चन्र्दगुप्त के समर्थन में कोई सेना नहीं थी। विद्धान चाणक्या द्वारा समस्त सैनीक पाटलीपुत्र के बाहर से एकत्रीत किये गये थे। उनमें भी प्रमुख रूप से उत्तर- पश्चिम म.प्र. के वीर धानुक सैनिक थे, जिन्होंने चन्र्दगुप्त के नेतृत्व में युद्ध कर राजा नंद को परास्त किया और वहिं बस गये। आज भी बिहार एवं नेपाल कि तराई में सर्वाधिक धानुक जाती के लोग पाये जातें है, जो कि वीर एवं कुशल प्रशासक अच्छे साहित्यकार हैं। बिहार मे  धानुक समाज के अनेक लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिए एवं अपने प्राणों की आहुति दी है ।

धनुष का अर्थ

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बिहार से श्री दिलावर सिंह जी के अनुसार धनुष का अर्थ 'धनु' के आगे 'क' जोरने से धनुक हुआ जिसका अर्थ 'धनुष चलाने वाला' होता है । राजा जनक के पुर्वजों को भगवा शिव द्वारा जो धनुष भेंट किया गया था । उसे भगवान श्री राम द्वारा सीता स्वयंवर में तोड़ा गया था । यह धनुष भगवान शिव द्वारा राजा सतधनु, जिन्हे कि धनक मुनि भी कहा जाता है , को भेंट किया गया था। जो कि राजा जनक के पुर्वज थे ।